“नवा छत्तीसगढ़ के 36 माह”
महिलाओं को समूह के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने की पहल,
मुर्गीपालन व्यवसाय में औराईकला की महिला समूह को मिली सफलता
(अशोक कुमार अग्रवाल )
जांजगीर चांपा(हाईटेक न्यूज ) 10 नवंबर, 2021 राज्य सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए सतत प्रयास किया जा रहा है। विगत 36 माह में विभिन्न शासकीय विभागों की योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को समूह के माध्यम से रोजगार एवं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की पहल के सार्थक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। महिला समूह के माध्यम से वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के साथ-साथ मुर्गीपालन जैसे अन्य आयमूलक गतिविधियों को अपनाकर करोड़ों रूपए का कारोबार और लाभांश अर्जित करने लगे हैं।
जांजगीर-चाँपा जिले के बलौदा विकासखण्ड के गांव औराईकला की स्व- सहायता समूह की महिलाओं के लिए गौठान में बनाया गया पोल्ट्री शेड फलीभूत साबित हो रहा है। गौठान उनके लिए कर्मभूमि बन गया। समूह की महिलाओं ने गांव में रहते हुए अपने आपको आत्मनिर्भर बनाया और मुर्गी पालन के क्षेत्र में हाथ आजमाते हुए इन महिलाओं ने सफलता की सीढ़ियां चढ़ना शुरू किया। आर्थिक आत्मनिर्भर बनने से उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हुई और वे गांव के लिए एक मिसाल बनकर उभरने लगीं। ग्राम पंचायत औराईकला के मोहारपारा की जय सती माँ स्व सहायता समूह की महिलाओं ने शुरूआती दिनों में छोटी-छोटी बचत करके जो पैसा जमा किया, उस राशि को कम ब्याज पर जरूरतमंदों को देकर उनकी मदद की। इससे वे गाँव में लोकप्रिय होने लगीं और धीरे-धीरे आर्थिक रुप से मजबूत भी हुई। कुछ रकम जमा हुई तो उन्होंने मुर्गीपालन व्यवसाय करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्हें एक बहुत बड़े शेड की जरूरत थी। समूह की महिलाओं ने अपनी इस जरूरत को ग्राम पंचायत के माध्यम से ग्राम सभा के समक्ष रखी। ग्राम सभा के अनुमोदन के आधार पर व 5 लाख रुपये की लागत से महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत समूह के लिए मुर्गीपालन शेड निर्माण का कार्य मंजूर किया गया।
समूह की अध्यक्ष श्रीमती रूप बाई बिंझवार ने बताया कि शेड के बाद पशुपालन विभाग द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) योजना से अनुदान राशि के रुप में मिले रिवाल्विंग फंड के 15 हजार रूपए एवं सी.आई.एफ. (सामुदायिक निवेश निधि) के 60 हजार रुपए से शेड में मुर्गीपालन का काम शुरू किया। उन्होंने काकरेल प्रजाति के 600 चूजे खरीदे, जिन्हें नियमित आहार, पानी, दवा एवं अन्य सुविधाएं देकर छह सप्ताह में बड़ा किया। मौसम खराब होने के कारण कई चूजों की मौत हो गई, जिससे समूह को काफी नुकसान हुआ। इन सबके बावजूद समूह की महिलाओं ने हार नहीं मानी और अपने आत्मबल और समूह की दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर फिर से मुर्गीपालन के काम में जुट गई। इस बार समूह ने 600 ब्रायलर चूजे खरीदे और उनकी देखभाल करना शुरू किया। धीरे-धीरे ये चूजे बड़े हो गए। आखिरकार इन महिलाओं की मेहनत रंग लाई और चाँपा के एक बड़े व्यवसायी ने मुर्गों को बेहतर दाम देकर खरीद लिया। इस बार समूह को मुर्गीपालन से लाभ हुआ और सभी खर्चों को काटकर उन्हें लगभग 30 हजार रूपए की बचत हुई। समूह की सचिव श्रीमती मालती चौहान बताया कि लाभ होने से समूह की सभी सदस्य काफी खुश हैं। लाभ मिलने से सभी का उत्साह भी दो-गुना हो चुका था। समूह ने फिर एक कदम आगे बढ़ाते हुए लगभग 600 चूजे और खरीद लिए, जो बड़े हुए तो उन्हें बेचने से समूह को लगभग 50 हजार रूपए का मुनाफा हुआ। लगातार मुनाफा होने से गांव की अन्य महिलाएं भी मुर्गी पालन के लिए प्रेरित हो रहीं हैं।