छ्त्तीसगढ़ सरकार ने पत्रकारों के साथ किया धोखा पत्रकारों को टीका लगवाने जनसम्पर्क विभाग से लेना होगा पत्रकार होने का प्रमाणपत्र
(धारणा अग्रवाल ,द्वारा )
रायपुर (हाईटेक न्यूज़ )11मई 2021
छ्त्तीसगढ़ सरकार के मुखिया भूपेश बघेल ने वकीलों और पत्रकारों को कोरोना योद्धा के रूप में स्वीकार कर फ्रंट लाइन वर्कर मानकर घोषणा कर मुफ्त में प्रचार एवं वाही वाही लूटी थी लेकिन उसका उल्टा ही हुआ एवं पत्रकार संघठन अपने आपको ठगा महसूस कर रहे है ।
ज्ञातव्य है कि पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर के रूप में सर्वप्रथम उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ,मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आदि राज्यो की ओर से घोषणा की गई थी ,छ्त्तीसगढ़ में भी इसको लेकर विभिन्न पत्रकार संघठनो ,जनप्रतिनिधियो ने भी शासन से पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर के रूप में मान्य करने की लगातार मांग की जा रही थी ,जिसे देर सबेर मुख्यमंत्री ने स्वीकार कर घोषणा कर दी थी ,जिसका प्रदेश के सभी पत्रकार संघठनो ने स्वागत करते हुए शासन के निर्णय का स्वागत किया था ।
लेकिन शासन द्वारा पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर के रूप में जो जानकारी मांगी जा रही है कि पत्रकारों को सम्बंधित जिला मुख्यालय में उप संचालक ,जनसम्पर्क कार्यालय में अपने पत्रकार होने बाबत आवेदन पत्र प्रस्तुत करना होगा ,उनके आवेदन पत्र पर सम्बंधित जिला जनसम्पर्क कार्यालय द्वारा प्रमाणपत्र जारी किया जावेगा तभी उस पत्रकार एवं उसके परिवार को फ्रंट लाइन वर्कर की श्रेणी में रखा जाकर उसका टीका करण करवाया जावेगा । सरकार का उक्त निर्णय से वास्तविक मेहनत कश पत्रकारों में रोष व्याप्त है।
ज्ञातव्य है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर मानते हुये कोरोना वेक्सीन का टीकाकरण में पत्रकारों को भी प्राथमिकता देने की बात कही है ! साथ ही सम्बन्धित जिलों के कलेक्टरों ने मीडिया कर्मी /पत्रकार होने का प्रमाणपत्र हेतु सम्बन्धित जिले के PRO को अधिकृत भी कर दिया ? यंहा तक तो सरकारी किंतु,परन्तु किसी की समझ मे नही आया ? जब PRO से सम्पर्क किया गया तो सरकार का धोखा ओर कड़वा सच सामने आया कि पोर्टलस वाले पत्रकारों को केवल उनको पत्रकार माना जायेगा जिनको मंत्रालय के मुख्य जनसंपर्क कार्यालय में पेनेलाइज किया गया है ??
यंहा यह उल्लेख करना अनिवार्य हो जाता है कि केंद्र सरकार द्वारा नवम्बर,2020 में ही ऑनलाइन /डिजिटल मीडिया को अधिसूचित किया जा चुका है तो तमाम राज्यो सरकारो को पोर्टलस, जो कि ऑनलाइन/डिजिटल मीडिया के अंतर्गत आते है, इन लाखो पोर्टलस पत्रकारों को पत्रकार के रूप में मान्यता एवँ सरकारी पहचान देने में दिक्कत क्या है ?
ज्ञातव्य है कि कोरोना महामारी के भीषण काल में शासन द्वारा अपने कुछ विभाग के कर्मचारियों को फ्रंट लाइन वर्कर के रूप में अधिसूचित किया गया है ,लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने मिडिया कर्मियों के साथ सरकार का असंवेदनशील रवैया समझ से परे है जबकि शासन प्रशासन की किसी भी प्रकार की जनहित की जानकारी देना ,किसी भी दुर्घटना ,घटना की जानकारी सर्वप्रथम शासन ,प्रशासन को मिडिया के माध्यम से ही मिलती है ,मिडिया कर्मी इस महामारी के काल में अपनी जान हथेली में रखकर अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन कर रहे है । शासन ने उनको इस लाइक भी नही समझा ।
उदाहरण के तौर पर जिला मुख्यालय से दूर ग्रामीण क्षेत्र का ग्रामीण संवाददाता को अपना पत्रकार होने के लिए जिला मुख्यालय चल कर आना होगा तभी उसे पत्रकार होने का तगमा मिलेगा यह सरकार की करनी एवं कथनी को उजाकर करता है ।
प्रिंन्ट एवं इलेक्ट्रानिक जर्नलिस्ट एसोसिएशन छ्त्तीसगढ़ राज्य ईकाई ,रायपुर के प्रदेश अध्यक्ष अशोक कुमार अग्रवाल ,छ्त्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष राजकुमार दरयानी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मांग की है ,सरकार अपने निर्णय पर पुर्नविचार कर संशोधित आदेश जारी करे ,ताकि सभी पत्रकार बन्धुओ को इसका लाभ मिल सके ,उन्होंने कहा है कि पत्रकारों के लिए सम्बंधित संस्थान के संपादक /प्रधान संपादक ,स्वामी ,संघठन प्रमुख द्वारा जारी प्रेस कार्ड (परिचय पत्र )को मान्य किया जाकर उसके आधार पर ही टीकाकरण में सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाकर अव्यहरिक आदेश अविलंब वापिस लेकर संशोधित आदेश जारी करने की मांग की है ।