मनरेगा से आपदा को अवसर में बदला महुदा की ग्रामीण महिलाओं ने ,महात्मा गांधी नरेगा से 25 एकड़ में फैली हरियाली,बना कोसाफल का सुंदर बगान ,जिले के बलौदा ब्लॉक बना मिशाल

मनरेगा से आपदा को अवसर में बदला महुदा की ग्रामीण महिलाओं ने,

कोसाफल और अंतरवर्तीय सब्जी उत्पादन कर कमाए-1लाख,70 हजार रुपए,

महात्मा गांधी नरेगा से 25 एकड़ में फैली हरियाली, बना कोसाफल का सुनहरा बागान.
(अशोक अग्रवाल )
जांजगीर-चाम्पा 27 नवम्बर 2020 कोरोना महामारी ने देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ आम आदमी की आर्थिक स्थिति को भी काफी नुकसान पहुँचाया है। एक ओर लॉकडाउन में जहाँ लोगों के रोजगार पर संकट छाया, तो वहीं अनलॉक होने के बाद भी लोगों को उनकी क्षमता के अनुरुप काम नहीं मिल रहा है। इन सब के बावजूद देश में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिन्होंने कोरोना महामारी जैसी आपदा को अवसर में बदला है और स्वयं के साथ-साथ अपने से जुड़े लोगों की आजीविका के लिए नए रास्ते बनाये हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण जय माँ कंकाली महिला स्व सहायता समूह की महिलाएँ हैं, जिन्होंने लॉकडाउन से अनलॉक की अवधि में रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न होने पर भी हार नहीं मानी और अपने मजबूत इरादों तथा दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत गाँव में रेशम विभाग के द्वारा महात्मा गांधी नरेगा मद से कराए गए अर्जुन वृक्षारोपण में कोसाफल तथा अंतरवर्तीय सब्जी उत्पादन करके, लाभ कमाने के साथ-साथ अपने परिवार के भरण-पोषण में मदद भी कर रही हैं।

जाँजगीर चाँपा जिले में ग्राम महुदा (च) की ग्रामीण महिलाएँ बनी मिसाल-

छत्तीसगढ़ में कोसे के कपड़े के लिए प्रसिद्ध जाँजगीर चाँपा जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर और बलौदा विकासखण्ड मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत महुदा (च) की माँ कंकाली महिला स्व सहायता समूह की महिलाएँ इन दिनों मिसाल बन गई हैं। कोरोना संक्रमण काल की विषम परिस्थितियों में ये महिलाएँ रेशम विभाग से कृमिपालन एवं कोसाफल उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त कर, जुलाई 2020 से अर्जुन के पेड़ों पर कृमि पालन का कार्य कर रही हैं। 45 दिनों की कड़ी मेहनत, लगन और आत्मविश्वास के दम पर पहली फसल के रुप में इन्होंने 35 हजार कोसाफल का उत्पादन प्राप्त किया। इन्होंने स्थानीय व्यापारियों को दो रुपए प्रति कोसाफल के हिसाब से बेचकर 70 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त की। वहीं प्रक्षेत्र के एक हिस्से में आलू, टमाटर, प्याज, लहसुन, मक्का, मूंग, पालक, लालभाजी, धनिया, मिर्ची के अलावा पपीता इत्यादि का उत्पादन करके, उन्हें आस-पास के स्थानीय बाजार में बेचने का कार्य भी कर रही हैं। इससे इन्हें एक लाख रुपए से अधिक की आमदनी भी हो चुकी है।
इस समूह की अध्यक्ष श्रीमती शांति बाई बरेठ बताती हैं कि लॉकडाउन में सब काम बंद हो गया था जिसके बाद यहाँ अर्जुन के लगे पेड़ों के बीच की खाली जगह को देखकर ध्यान आया कि इसमें हम सब्जी उगाकर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। फिर यहाँ हमने सब्जी उगाने का प्रयास किया जो अब हमारी सहायक आजीविका बन गया है। वे कहती हैं कि कोरोनाकाल की शुरुआत में हमारे गांव क्षेत्र के साप्ताहिक बाजारों में रोक होने के कारण सब्जियों के दाम लगातार बढ़ रहे थे। ऐसे में गांव के गरीब लोगों को सब्जियां खरीदने में काफी दिक्कत हो रही थी। हमारे उत्पादन से गांव के लोगों को बहुत राहत मिली। कम कीमत होने के कारण ग्रामीण आसानी से खरीदते रहे।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना बनी आजीविका का आधार-

दरअसल महुदा (च) गाँव की लगभग 25 एकड़ भूमि वीरान और अनुपयोगी थी। यहाँ पंचायत की पहल पर करीब चार साल पहले रेशम विभाग के द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) अंतर्गत 6 लाख 60 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति से टसर पौधरोपण किया गया था। इसमें 73 मनरेगा जॉबकार्डधारी परिवारों ने काम करते हुए 41 हजार पौधों का रोपण किया था, जिसके लिए उन्हें 3 लाख 75 हजार 446 रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया। वहीं रोपे गए पौधों के संधारण के लिए अभिसरण के तहत रेशम विभाग के द्वारा रेशम विकास एवं विस्तार योजनांतर्गत 11 लाख 42 हजार 400 रुपए स्वीकृत किए गए। इन चार सालों में अर्जुन पौधे अब 6 से 8 फीट के हरे-भरे पेड़ बन गए हैं। यहाँ भूमिगत जल की वृद्धि के लिए महात्मा गांधी नरेगा से साल 2020-21 में 5.54 लाख रुपए की लागत से पौधों के निकट 6,220 गड्ढे खोदे गए हैं। इस कार्य में मनरेगा श्रमिकों को 2 हजार 490 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त हुआ है।
जिला रेशम विभाग के उपसंचालक श्री एस.एस. कंवर ने इस संबंध में बताया कि यहाँ महात्मा गांधी नरेगा से टसर पौधरोपण एवं संधारण कार्य में जिन महिलाओं ने काम किया था, उनमें से रुचि के आधार पर 25 महिलाओं का एक समूह बनाया गया और उन्हें कृमिपालन का 15 दिवसीय विशेष प्रशिक्षण दिया गया। अब ये महिलाएँ कोसाफल उत्पादन में पारंगत हो गई हैं और इसे अपनी आजीविका के रुप में अपना लिया है।
महुदा गाँव की इन ग्रामीण महिलाओं का यह छोटा सा प्रयास स्वयं के साथ-साथ गाँव की अर्थव्यवस्था के विकास में भी सराहनीय कदम है।

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