विश्व जल दिवस पर आलेख-डॉ सुमित गर्ग ,डिप्टी कलेक्टर ,जांजगीर चाम्पा

विश्व जल दिवस पर आलेख-डॉ सुमित गर्ग ,डिप्टी कलेक्टर ,जांजगीर चाम्पा

(अशोक कुमार अग्रवाल)

जांजगीर -चाम्पा (हाईटेक न्यूज)21 मार्च 2022
प्रतिवर्ष ’22 मार्च’ को लोगों व सामाजिक संगठनों के द्वारा उभरते हुए जल संकट की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने हेतु ‘विश्व जल दिवस ‘मनाया जाता है।
इस वर्ष हेतु विश्व जल दिवस की थीम है:
“Groundwater:Making the invisible visible.” मानव शरीर का लगभग 70% हिस्सा जल के रूप में है। जल मानव शरीर के उपभोग हेतु एक प्राथमिक आवश्यकता है। दूसरी ओर पृथ्वी का लगभग 78% हिस्सा जल के रूप में है। पृथ्वी के कुल जल का सतही हिस्सा नगण्य रूप में मौजूद है। कुल जल का लगभग 97% भाग महासागरों और सागरों के रूप में है। मात्र 3% ही ताजे जल के रूप में मौजूद है। इस 3% में भी 69 % ग्लेशियर्स के रूप में, 30% भूमिगत जल के रूप में तथा 1% से भी कम झीलों, नदियों, तालाबों, विभिन्न जलस्रोतों इत्यादि के रूप में समाहित है। स्पष्ट है कि आवश्यकता के अनुरूप उपलब्ध पेयजल की मात्रा काफी कम है । हमारा जीवनदाता जल स्वयं सन्कट में पड़ गया है। ताजे पानी की घटती हुई उपलब्धता आज विश्व की सबसे ज्वलंत समस्या है। कुछ वर्ष पूर्व तक यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि सन 2025 तक संसार के एक तिहाई लोग जल के संकट से गुजरेंगे परंतु उस संभावित विषम परिस्थिति ने समय से पूर्व ही अपनी दस्तक दे दी है यानी 2025 तक संभवतः यह संकट दो तिहाई आबादी को अपनी चपेट में ले लेगा। जल संकट के मूलभूत कारणों में जल का कुप्रबंधन, मानव समुदाय की बढ़ती हुई जनसंख्या , अंधाधुंध वृक्षों की कटाई , बढ़ता हुआ प्रदूषण सीधे तौर पर जिम्मेदार है। भूमिगत जल के स्तर में प्रति वर्ष 1 मीटर तक की गिरावट दर्ज की जा रही है। इस समस्या से निपटने हेतु भूमिगत जल संरक्षण के उपायों जैसे रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली को बढ़ावा देना ,अधिकाधिक वृक्षारोपण कार्यों को संपादित करना ,जल का समुचित उपयोग ,कम जल आवश्यकता वाली फसलों जैसे ज्वार,बाजरा का उपयोग करना ,भू माफिया पर कार्रवाई करना इत्यादि अपेक्षित है ।पेयजल हेतु समुद्री जल के" रिवर्स ऑस्मोसिस "तकनीक का प्रयोग क्रियान्वित करना अपेक्षित है । दुखद आश्चर्य का विषय है कि जीवनदाता जल वर्तमान में स्वयं अपने अस्तित्व हेतु संघर्षरत है ,।मनुष्य व जल परस्पर एक दूसरे के पूरक हैं ।जल बचेगा तभी मनुष्य बचेगा और मनुष्य प्रयास करेगा तभी जल बचेगा। प्राचीन काल में हम नदियों से प्रार्थना किया करते थे -हे पुष्यसलीला मां ,हमारे पापो को धो लो, हमारे तन मन की मलिनता को धो दो तो वही अब नदिया हमसे कहने लगी हैं -बेटे मुझे गंदा मत करो ,मुझे बचा लो। यदि समय रहते इस समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया गया और भूमिगत जल के स्तर को बढ़ाने के पर्याप्त उपाय नहीं अपनाएं गए तो आने वाली पीढ़ीया हमें कभी भी माफ नहीं करेगी।

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